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कविता

खुले उरोज

नमन जोशी


एक कोहरे की गहराई में,

बैठ गई कोई स्तन खोले,

काँप उठी तब नीली गेंद

कुल्टी, वैश्या, मस्तन बोले।

मचल गया धन्ना का यौवन,

गलीधारी भागते आए,

दहक उठी स्तन की बातें,

स्तन वाली सब चिल्लाए।

टूटे कमल की पंखुड़ी वाले,

नयनों में अश्रु भर बोले,

एक कोहरे की गहराई में,

बैठ गई कोई स्तन खोले।

कोहरे में कोहराम मचा,

भीड़ अति भी जम आई,

यौवन के इस विलख खेल में,

दिखी मातृ सी परछाईं...

स्तन के जादू के दर्शक,

अब दूरी से दूर हुए,

उहा-उहा के रोदन से..

सब कृतज्ञ मजबूर हुए।

थम से गए करुणा गीत,

उहा-उहा बोले ना डोले,

एक कोहरे की गहराई में,

बैठ गई कोई स्तन खोले।


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